Saturday, May 17

सनसनी



Present day only school in Barsana (distt: Mathura)


चैन से सोना है तो जाग जाओ!!

आज हम अपने दर्शकों (read: पाठकों) को एक ऐसे विद्यालय में लायें हैं जहाँ हमारे देश के भविष्य का निर्माण हो रहा है। आज २००८ में जहाँ एक तरफ मेट्रोस में स्कूल में दाखिला दिलवाने के लिए अभिभावकों में मारामारी का दृश्य देखा जा सकता है, वहीं दूसरी तरफ हमारे देश में आज भी ऐसे गाँव और छोटे कस्बे हैं जहाँ स्कूल के नाम पर एक आँगन में बच्चों को दरियों पर बैठा कर शिक्षा दी जाती है।

बड़े शहरों में स्कूल्स अभिभावकों और छात्रों को आकर्षित करने के लिए co- curricular activities की भरमार है। यहाँ तक कि अलग अलग देशों के खेल - बेसबॉल, रुग्बी , स्विम्मिंग, इंडियन क्लास्सिकल डैन्सिग के इलावा सालसा, जैज़ सिखाने की सुविधा है, वहीं दूसरी तरफ़ इन कस्बों के ये school कहलाने वाले जहाँ बैठने की व्यवस्था पेड़ के नीचे है तो को करिक्युलर आक्टिविटीस के लिए स्थान तो दूर की बात, इन बच्चों को और खेल के मैदान और कक्षा में फर्क शायद न पता हो।

यहाँ तो पूरे स्कूल में एक ही क्लास है तो बाकी की क्लासस कहाँ लगती होंगी ये सोचने वाली बात है। क्लास के अन्दर खड़ी मास्टर जी की साइकिल यहाँ की विद्या प्रणाली कच्चा चिट्ठा खोलती नज़र आती है। ऐसे मे देश का भविष्य किन मुश्किलों से जूझ रहा है शिक्षा प्राप्त करने के लिए यह तो इस फोटो तो देख कर अंदाज़ा लगाया ही जा सकता है. इस स्कूल और बड़े शहरों के बड़े स्कूल मे कॉंट्रास्ट काफ़ी विचार करने योग्य है.


एक ही देश के बच्चों की पढ़ाई और सुविधाओं मे जो दर्शनीय फ़र्क है यह समाज के दो तबकों के बीच का अंतर पाटने के बजाए गहराता हुआ ही दिखता है.


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